Tuesday, March 20, 2007

Khamoshi Se Bat


जब भी मेरी तनहाई उदास होती है

उसकी khamoshi से बात होती है


चुप रहकर वो सारी बात कहती है
अपनी रूखी पल्नको को भिगोती है

चमकते चांद को वो देखती है
पर अंधेरे कि उसको तलाश होती है

घंटो बेठे गिनती है तारे आसमान के
लेकिन कोशिशे नाकामयाब होती है

छुपाया नही कुछ हमेशा कहती है
हर चुप्पी मे पर कोई बात होती है

लपेटे रहती है हंसी चेहरे पर
पर भीतर से अक्सर उदास होती है

नही कोई सुनने वाला है उसकी
अंतर से ऐसी कोई आवाज़ उठती है

खो गयी अगर दुनिया के शोर मे
ये सोच- सोच कुछ नही कहती है

जब भी मेरी तनहाई उदास होती है
उसकी बस.....khamoshi से बात होती है